Monday, October 10, 2016

#Blue_Shirt

यात्रीगण ध्यान दे वैशाली की ओर जाने वाली गाड़ी प्लेटफार्म नंबर २ पर आ रही है.

ओहो गाड़ी भी आ गई. लड़कियों के लिए लगी लम्बी कतार में मेट्रो परिसर में अपनी एंट्री का इंतज़ार करती हुई सनाया आज 5 मिनट लेट उठने पर अफ़सोस जता रही थी. काश मैं 5 मिनट पहले उठ गई होती तो मुझे ये मेट्रो मिल जाती.
अब मै 5 मिनट देरी से ऑफिस पहुँच पाऊँगी और 5 मिनट की देरी पर वो राक्षण मेरा सिर खा जायेगा. नरक हो गई है जिंदगी यहाँ. क्या सोचके के घर से निकली थी कि बड़े शहर में हज़ार मौके मिलेंगे. 4 साल इंजीनियरिंग की पढाई का कुछ तो फल मिलेगा. आखिर कार टोपर थी मैं. लेकिन यहाँ आके जिंदगी क्या हो गई है. करने के लिये तो कोई काम बुरा नहीं हैं, लेकिन मैं कब तक इसमें अपना टाइम बर्बाद करूंगी. 9:30 से 6:30 बजे तक वाली जिंदगी मैं ज्यादा दिन तक नहीं झेल सकती. और इस बड़े से शहर में कोई नहीं हैं मेरी ये बातें सुनने वाला.

और तभी मैडम मैडम आपका बैग मेट्रो चेकिंग के अन्दर खड़ी महिला कांस्टेबल सनाया को उसकी हताशा से भरे ख्यालों से निकाल देती है.

सनाया उसे शक की नजरों से देखती है और अंदाजा लगाती है कि उसने अभी क्या बोला.

फिर वो कांस्टेबल अरे मैडम अपना बैग मशीन में रखकर आइये.

ओह्ह्ह सॉरी. अपनी बेवकूफकाना हरकत पर सनाया को थोड़ी सी शर्मिंदगी होती है फिर वो बाहर आकर बैग चेकिंग वाली मशीन में अपना बैग रखती है फिर खुद सेल्फ चेकिंग वाले एरिया से निकल कर जैसे ही अपना बैग उठाती है उसी के साथ ही वो झटके से बैग उठाने के चक्कर में  किसी और का बैग गिरा देती है.

ओह्ह्ह आई ऍम सो सॉरी.

इट्स ओहक सामने खड़ा एक नौजवान शालीनिता भरी मुस्कान के साथ बोलता है.

सनाया उसकी मुस्कान को अनदेखा सा करके अपनी ट्रेन पकड़ने के लिए चली जाती है.

जैसे ही मेट्रो आती है सनाया पीछे मुड़कर देखती है तो वही लड़का उसके पीछे खड़ा होता है. मेट्रो के गेट के खुलते ही दोनों अन्दर प्रवेश कर लेते है, सनाया बड़े स्टाइल में अपना फ़ोन निकालती है और इअरफ़ोन लगाकर गाने सुनने लगती है. जैसे ही उसका स्टेशन आने वाला होता है. तो मेट्रो के शीशे से वो देखती है कि वही लड़का उसके पीछे खड़ा है. सनाया मन ही मन में सोचती है कि अब क्या ये मेरे साथ उतरेगा भी.

और होता भी वैसा ही है. सनाया की तरह वो लड़का भी उसी स्टेशन पर उतरता है. फिर एग्जिट गेट की लाइन से लेकर मेट्रो स्टेशन के बाहर तक वो लड़का सनाया के पीछे पीछे ही चलता है. अब इसे संजोग कहे या किस्मत. कि जिस शेयरिंग टैक्सी में सनाया बैठती है. वो लड़का भी उसी टैक्सी में बैठता है. अब तो सनाया का गुस्सा बढता ही जा रहा था. मन में न जाने कितने ख्याल आ रहे थे. और तो और थोड़ी थोड़ी देर में न चाहते हुए भी सनाया की नज़र उसकी ओर चली जाती थी, और जैसे ही वो लड़का सनाया की ओर देखता. सनाया ठिठक के अपना मुंह फेर लेती. मतलब अब ये मुझे ताड़ भी रहा है, अगर ये मेरे साथ ही उतरा तो फिर तो मै इसे सबक सिखा ही दूंगी. सनाया न जाने कितने ऊल जलूल ख्याल अपने मन में ला रही थी. तभी उसके कानों ने एक आवाज़ सुनी, जो उसी लड़के की थी- भैया बस आईटी चौराहे पर रोक दीजियेगा. फिर टैक्सी रूकती है और वो लड़का उतरकर चला जाता है.

अब तो सनाया को और भी गुस्सा आने लगा, लेकिन इस बार ख़ुद पे. तुम समझती क्या हो सनाया ख़ुद को, कहीं की हूर हो, कि हर लड़का तुम्हारे पीछे ही आयेगा. एक तो तुमने उसका बैग गिराया ऊपर से इतनी देर से उसके बारे में न जाने क्या क्या सोच रही हो. हद होती है किसी चीज की. सच में अब तो कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा. दिमाग ख़राब होता जा रहा है मेरा.
तभी टैक्सी वाले भैया. मैडम बासठ आ गया.

दूसरे दिन सनाया उसी जल्दबाजी के साथ मेट्रो स्टेशन की सीडियाँ चढ़ रही थी. ओहो आज फिर पांच मिनट लेट हो गयी यार. फिर से ये वाली मेट्रो मिस हो जाएगी. जल्दी जल्दी चेकिंग एरिया पार करके सनाया प्लेटफार्म पर पहुचती है तो देखती है कि वही लड़का प्लेटफार्म पर पहले से ही खड़ा है. वही ब्लू शर्ट में. उसे देखते ही सनाया ने अपनी नजरे चुराई और एक ओर देखने लगी. ट्रेन आई और दोनों उसमे सवार होके अपनी अपनी मंजिल को चल दिए.
सनाया को हर रोज वो लड़का मेट्रो स्टेशन पर मिलता, कही एंट्री के टाइम या प्लेटफार्म पर या फिर एग्जिट के समय. लेकिन मिलता ज़रूर था. और उसी ब्लू शर्ट में. शायद उसके ऑफिस की ड्रेस हो. सनाया अक्सर उसे देखके यही सोचती.

कभी कभी तो एग्जिट करते टाइम अगर सनाया पीछे खड़ी हो तो वो सनाया को पहले एग्जिट करने के लिये ऑफर करता. और तो और टैक्सी में भी सनाया को आता देख वो साइड में खिसक जाता और सनाया को सीट ऑफर करता.

बिना बोले ही सनाया को ऐसे लगता कि जाने कितनी बात कर ली हो उससे. सनाया को भी अब आदत सी हो गई थी उसकी. और अब तो बिना बडबडाये हर रोज जानबूझकर पांच मिनट लेट निकलती थी. आखिरकार मेट्रो की हर रोज की बदलती भीड़ में एक चेहरा जो मिल गया था. वो ब्लू शर्ट.

बस फिर क्या दो तीन महीनें तक यही सिलसिला चलता रहा. न उसने कुछ बोला और न ही सनाया ने. बस वो 8:20 वाली मेट्रो उनका पत्ता थी. और उस आईटी चौराहे तक का उनका सफ़र. अब सनाया भी कोशिश करती थी कि वो उसी टैक्सी में आके बैठे. इसीलिए जानबूझकर वो टैक्सी के दूसरी साइड नहीं खिसकती थी. जैसे ही वो ब्लू शर्ट वाला लड़का आता तो वो खिसक के उसे जगह देती. ये सिलसिला यूँही चलता जा रहा था.

फिर एक दिन हर रोज की तरह सनाया अपना मेल बॉक्स चेक कर रही थी. तभी वो देखती है कि उसकी मेल लिस्ट में congratulation का एक मेल होता. जैसे ही सनाया उसे खोलती है तो उसकी आँखे खुली की खुली रह जाती है. ओह माय गॉड मेरा सिलेक्शन लैटर आ गया. वो तुरंत अपना फोन उठाती है. और अपने घर पर फोन लगाती है.

हेलो मम्मी, मम्मी मेरा सिलेक्शन हो गया एक बहुत बड़ी आईटी कंपनी में. जिसके लिये मैंने पिछले महीने written दिया था. जिस दिन का मुझे इतना इंतजार था वो दिन आ गया मम्मी. मंडे बुलाया है. सारी formalities के बाद. next डे से ही जोइनिंग हैं.

अपनी ख़ुशी सबमे बाँट कर सनाया जब बैड पर लेटी हुई ऊपर की ओर देख रही थी, तभी उसे एहसास होता है. कि इस नयी नौकरी के साथ सब बदल जायेगा. उसका ऑफिस, आसपास के लोग, वो ऑफिस के बाहर टपरी वाली चाय, और वो 8:20 वाली मेट्रो. अचानक से ही सनाया की सारी खुशियों में जैसे ग्रहण लग गया. और वो बेचैन होने लगी.  


पूरी रात वो बस यही सोचती रही. कि अब वो क्या करेगी. मुझे तो ये भी नहीं पता की क्या मैं उसे पसंद करती हूँ. अगर वो न करता हो तो. हमारे बीच जो चल रहा है वो बस एक दूसरे का बहम हो. और मै उससे बोलूंगी क्या, किस हक़ से बोलूंगी कि मैं अब से इस रास्ते नहीं आऊँगी. कि अब से हमारे रास्ते अलग हो जायेंगे. और शायद अब हम कभी न मिल पाए. या फिर कम से कम उसका नाम ही पूंछ लूंगी. अपने मन और दिमाग की लड़ाई में सनाया ने पूरी रात गुजार दी. 

सुबह जल्दी उठके बिना कुछ सोचे वो निकल पड़ी उस 8:20 की मेट्रो के लिए. एंट्री गेट से लेकर प्लेटफार्म तक सनाया की नजरे बस एक ही चीज ढूढ रही थी. वो ब्लू शर्ट. ब्लू शर्ट तो बहुत मिली लेकिन वो वाली नहीं जिसका सनाया को इंतजार था. एग्जिट के टाइम भी सनाया ने बहुत कोशिश की. कि कहीं से वो उसे दिख जाये लेकिन उसका कहीं पता नहीं था. थक हार के सनाया टैक्सी स्टैंड पर पड़ी चेयर पर बैठ गई. और सोचने लगी अब क्या होगा कैसे उसे मैं ढूढूगी. मुझे तो उसका नाम तक नहीं पता. बस एक ही चीज हैं उसकी जो मुझे याद है. बस उसकी वो ब्लू शर्ट. 

Thursday, October 6, 2016

आँखे बंद जब की मैंने

आँखे बंद जब की मैंने, तो तेरी परछाई का एहसास हुआ, खोलते ही गुम गया तू, तब मुझे ये एहसास हुआ, कि तू है कहीं आसपास मेरे, साया तेरा मुझमें ही हैं. रखती हूँ कदम जहाँ भी, छाया तेरी मुझपे ही हैं. जब जब ये धड़कन बढ़ती है, तेरी ही नज़र का जादू है जो साथ साथ चलती है. हर चेहरे में जब तेरा चेहरा ढूढती हूँ. मचल उठती हूँ मैं जब उनमें तुझे न पाती हूँ. कहा हो तुम कैसे हो तुम, बस ये ख्याल अब दिल को सताता हैं, मिल पाऊँगी कभी क्या मै तुमसे, बस ये फिक्र मुझे जलाती है. कुछ न बाकी है अब हमदम, अब तुझसे बस मिलना है. कहाँ हैं तू कैसा हैं तू बस ये अब मुझको सुनना है. जबतक साँसे चल रही है तब तक तुझसे मिलने कि आस है. तो क्या मिलोगे तुम बस एक बार चाहे आखिरी बार.

Wednesday, September 28, 2016

#Equality - हम सब एक है....

हैं कौन देश का वासी तू,
और क्या तेरी जात है,
हिन्दू है या मुस्लिम है तू,
अरे क्या तेरी पहचान है,
है क्या तू इसी दुनिया का,
या अलग ही तेरा जहान है,
देखा मैंने जहाँ जहाँ 
तू मिल जाता है वहां वहां,
लिए हाथ में खंजर सीने में पत्थर
मन द्वेष आखों में नफ़रत,
है किसकी तुझे तलाश है,
क्यों ये इतना वैर है और 
क्यों ये खून की प्यास है,
क्या भूल गया कि इंसान है तू,
तुझसे ही ये धरती आसमान है,
मिलके बनाते हो तुम ही घरोंदे ,
फिर क्यों उसको खुद ही उजाड़ने के ख्याल है,
नहीं समझ सकता मैं इस सत्ता को,
जहाँ एक हाथ में हथियार दुसरे में गीता कुरान है.

Monday, August 15, 2016

ऐ माँ....

है कुछ किस्से यादों की लोरी में,
आधे तेरे आधे मेरे,
चलना है साथ बस यू ही,
चाहे सांज हो या सबेरे,
तेरे आंचल के साये में,
संभले है हालात मेरे,
दूर हूँ  अभी तो क्या ऐ माँ...
नजरों की दूरी बाँट न सकती प्यार को तेरे......

Tuesday, May 24, 2016

आईना

आईना.......


मंगलम भगवान् विष्णु मंगलम गरुद्द्वाज,
मंगलम पुण्डरीकक्षाय मंगलाये तनोहरी......
वर वधु फेरों के लिए खड़े हो जाइये,
राज बेटा पंडित जी कुछ कह रहे है, राज सुन रहा है न तू..
राज यार क्या हुआ???
अपने दोस्त राहुल की आवाज सुनकर राज अपने ख्याल से बाहर आता है.
क्या कर रहा है यार दिन में सपनें, अभी ऑफिस खत्म होने में टाइम है सो गेट उप, क्या हुआ कोई दिक्कत. अगर है तो इसको तू ही सोल्व कर सकता है, राहुल बड़े ही मजाकिया अंदाज में बोलता है. अपनी ही दुनिया में मगन राज बस ह्म्म्म का जवाब देकर फिर सोचने लगता है. कि आज वो कहाँ आकर खड़ा हो गया है. ऐसी जगह जहाँ उसे कुछ समझ नहीं आ रहा. सोचते सोचते वो राहुल से बोलता है कि अब मैं सब खत्म करने की सोच रहा हूँ. इसबार पक्का मैं प्रिया को बोल दूंगा. लेकिन पिछले ५ सालों से ये बात सुनते सुनते राहुल भी ऊब गया था. उसे पता था कि मैं ऐसा कुछ नही करने वाला. राहुल की तरफ से कोई भी रिस्पांस न मिलने के कारण राज फिर सोचने लगता है.

शादी के ५ सालों बाद राज को फिर वही ख्याल आया था जब वो अपनी शादी के मंडप में बैठकर पंडित जी की बातों और शहनाइयों की आवाज से ऊपर उसे अपने मन की आवाज सुनाई दे रही थी वो सोच रहा था. क्या ये सही समय है शादी करने के लिए, मैं तो प्रिया को जानता तक नहीं, ये कोई तरीका नहीं होता की खुद फैसला कर लिया और बस बोल दिया लड़की अच्छी है. अरे लडकियाँ कौन सी ख़राब होती है, मुझसे तो पूछा होता कि मैं क्या चाहता हूँ. उस समय तो लगा कि मम्मी पापा ने कुछ सोचकर ही रिश्ता तय किया होगा. और शायद सबको शुरुआत में ऐसा ही लगता है. एक दूसरे को जानेगे तो सब ठीक हो जायेगा. लेकिन राज का ऐसा सोचना गलत था. वो आज भी उसी मजधार में फंसा है जिसमें वो शादी के टाइम फंसा था.

वैसे प्रिया कहने में सबसे बेस्ट वाइफ होगी, वो सुन्दर है, घरेलु है, अपने पति का ख्याल रखना उसे बहुत अच्छे से आता है. मेरी सारी चीजें वो बहुत अच्छे से सम्भाल के रखती है, जो है वो उतने में खुश रहती है, कभी न शिकायत, न ही डिमांड. इतने साल होने के बाद भी उसने कभी ये नहीं पूछा की मै उसके करीब क्यों नहीं आया. उसको खुश करना भी कोई मुश्किल काम नहीं. महीनें में उसके पसंद की चीजें दिलवा दो. या कुछ भी लाकर दे दो, वो ख़ुशी ख़ुशी एक्सेप्ट कर लेती है.वैसे कहने को तो हम पति पत्नी है. एक घर में रहते है, ऑफिस पार्टी में साथ साथ जाते हैं, कभी कभी साथ में शॉपिंग कर लेते है. दुनिया की नज़रों में  “अ हैप्पी मैरिड कपल. लेकिन असल में हम एक घर में दो मशीन की तरह रहते है. जहाँ मैं पैसे कमाने में लगा रहता हूँ और वो घर सम्भालन में. प्रिया कभी मुझसे कुछ सवाल नहीं करती, मैं जितना बोलता हूँ सुन लेती है और मान भी लेती है.
मैं प्रिया से कभी प्यार नहीं कर सकता, इस चीज का एहसास मुझे शादी की पहली रात को ही पता चल गया था, और ऐसा कभी भी नहीं कर पाऊंगा, इस चीज का एहसास मुझे सोनिया से मिलने के बाद पता चला. सोनिया मेरी दोस्त है या कहे दोस्त से कुछ ज्यादा. मै अपनी ५ साल की शादी के वाबजूद एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर चला रहा हूँ सोनिया के साथ. उस लड़की के साथ जिससे मैं प्यार करता हूँ. सोनिया जितनी बोल्ड है प्र्रिया कभी वैसी हो ही नहीं सकती. एक ओर जहाँ सोनिया इतनी वायलेंट है वही प्रिया उतनी ही शांत. माना कि सोनिया मेरे ही ऑफिस में काम करती है, लेकिन सोनिया वो लड़की है जिसे मैं हमेशा अपने ख्यालों में सोचता था जिसको देखते ही मैं समझ गया था कि यही है वो लड़की जिसके लिए मैं इतने टाइम से इंतजार कर रहा था. जब वो पहले दिन ऑफिस में आई, तो हर किसी की नजर बस उसपर थी. स्काई ब्लू शर्ट के साथ स्किन टाइट ग्रे कलर स्कर्ट में किसी बॉस से कम नहीं लग रही थी. जब सर ने सारी टीम के साथ उसका इंट्रोडक्शन कराया तो सबके सब बेताब थे कि उनका नंबर कब आएगा. एक एक करके जब मेरी बारी आई तो मैं पहला था जिसको सोनिया ने खुद आगे आकर हाथ मिलाया, भाई मेरा तो दिन बन गया और बाकी सबकी शक्लें. फिर उसी दिन जब लंच पर वो मेरे साथ वाली चेयर पर आकर बैठ गई और बोली, मेरे यहाँ बैठने में आपको कोई दिक्कत तो नहीं. मेरी जवाब सुने बिना ही वो बोल पड़ी अरे आपको होगी भी नहीं यू आर नॉट दैट टाइप ऑफ़ पर्सन. मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि ये दैट टाइप ऑफ़ पर्सन क्या हुआ. मतलब मैं कोई टाइप में भी आता हूँ. खैर पूरे लंच के टाइम वो मुझे देखकर बात करे जा रही थी. और सब मुझे देखें जा रहे थे. एक ही दिन में मै सोनिया से ज्यादा नोटिस होने वाला वंदा बन गया था. शाम तक आते आते बात तो और ही बड़ गई. और वो ये की सोनिया ने मुझे गले लगाकर बाय बोला और चली गई. अब तो सच में सबकी सिगरेट के साथ उनका दिल भी जल रहा था. ऐसा नहीं है की मैं उससे बात नहीं करना चाह रहा था. लेकिन यहाँ तो बिना बात के ही बात बड़ रही थी.
उसी शाम जब मैं घर आया तो मेरे नॉक करने के पहले ही प्रिया ने दरवाजा खोल दिया. और लाल साड़ी में तैयार प्रिया किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी. मांग में सिंदूर, माथे पे बिंदी, गले में मंगलसूत्र सारी चीज़े उसके और मेरे रिश्ते को बयाँ कर रही थी. सोनिया के ख्यालों में खोया हुआ मैं एकदम से अपनी असल जिंदगी में आ गया. जहाँ मैं किसी का पति था. रोज की तरह प्रिया ने ब्रीफ़केस लिया और बोली आप फ्रेश हो जाइये, मैं खाना लगा देती हूँ. हर महीनें में एक आध बार प्रिया ऐसा जरुर करती थी. जब वो अच्छे से तैयार होकर मेरे पसंद की सारी चीजें बनाती थी. वैसे तो वो हमेशा ही मेरी पसंद का ख्याल रखती थी. लेकिन कुछ दिन ये स्पेशल ट्रीटमेंट उसकी तरफ से हमारे रिश्ते को जिंदा करने की तरकीब होती थी. जिसे मैं हमेशा ख़राब कर देता था. उसके इस रूप को देखकर कोई भी इन्सान अपने आपको उस पर लुटा सकता था. लेकिन मैं पता नहीं क्यों चाहकर भी ये नहीं कर पा रहा था. खाना खाते ही मैंने उससे बोला कि मैं थक गया हूँ. तो मैं सोने जा रहा हूँ. अपने माथे पर एक सिकन लाये बिना वो  बोली ठीक है आप सो जाइये. कभी कभी मैं खुद सोचता था कि मैं ये क्या कर रहा हूँ. क्यों अपनी बजह से किसी और को सज़ा दे रहा हूँ. इसमें प्रिया की क्या गलती. और यही बात मेरा दोस्त राहुल भी हर बार समझाता था. कि तुम्हें कोई तो फैसला लेना होगा. लेकिन हर बार मेरे सामने ये बात आ जाती थी कि मैं अपने माँ-बाप को क्या बोलूँगा, कि मैं प्रिया को किस लिये छोड़ना चाहता हूँ. यही कि वो बहुत अच्छी हैं, मेरा हमेशा ख्याल रखती है, और मैं जो कुछ भी बोलता हूँ मान लेती. वो हर एक मामले में एक अच्छी बीवी हैं. लेकिन शायद मेरी जरूरतें ही अलग है.
मैं प्रिया की मेहनत और उसके प्यार को इग्नोर करके सोनिया के ख्यालों में फिर से खो गया. कि उसने सिर्फ मुझसे हाथ मिलाया और आते वक़्त गले भी मिली. इतनी जल्दी मैं सोनिया के, या ये कहे हम दोनों एक दूसरे के इतने करीब आ जायेंगे सोचा भी नहीं था. उसका मीटिंग के बीच मुझे आँख मारना, टेबल के नीचे से मेरा हाथ दबाना. मेरे पसीने ही छुड़वा देता था. मीटिंग खत्म होने के बाद उसका मेरी हालत पर जोर जोर से हंसना और मुझे फट्टू बुलाना मुझे सबसे ज्यादा पसंद था. कभी भी कहीं भी कुछ भी बोलने वाली सोनिया हमारे प्यार में ट्विस्ट डालने के लिए हमेशा रेडी रहती थी. और उसके वो टैगलाइन- टू मिनट मैगी चाहिए या फुल डिनर. सच में उसकी इस बेबाकी वाली जिंदगी में मैं हर एक चीज भूल जाता था. सिर्फ मुझे सोनिया दिखती थी, उसकी वो हंसी, उसके वो प्रैंक. एक बार तो रात को १२ बजें मुझे कॉल करके बोला कि मेरे घर में कोई हैं. प्लीज जल्दी आ जाओ, मैं डर की वजह से भागा गया तो देखा फ्लैट का दरवाजा खुला था जब मैं अन्दर गया, तो पूछा क्या हुआ कौन था. चला गया क्या? नहीं अभी तो आया है सोनिया ने कहा.

आज मेरे और सोनिया के रिश्तें को ३ साल हो गये है.लेकिन अब भी इसमें एक नयापन हैं. बस अब मैं प्रिया से कुछ नहीं छुपाना चाहता. मैं उससे अपने हर एक किये की माफ़ी मांग लूँगा. और मुझे पूरा विश्वास है कि वो मुझे माफ़ कर देगी.
हर बार मैं ये सोचता था कि मैं अपने हिस्से की ख़ुशी क्यूँ न जियूं, लेकिन हर बार ये भूल जाता था की प्रिया की भी तो कुछ ख़ुशी होंगी. आज वाशरूम में सोनिया के साथ जब शीशें में मैंने अपने आप को देखा तो पाया कि मैं क्या हो गया हूँ. अपनी जिंदगी और अपनी ख़ुशी में इतना पागल की मुझे ख्याल तक नहीं रहा किसी और का. वो चमचमाती रौशनी में मुझे मेरा चेहरा काला नज़र आ रहा था. जिसपर खुदगर्जी और बेगैरतपन की कालिख पुती हुई थी. मैंने अपना मुंह शीशें की तरफ से मोड़ा और सीधे वाशरूम से बाहर आकर अपनी डेस्क पर बैठ गया.

आज मुझे घर जल्दी जाना होगा, अब मैं एक पल भी नहीं रुक सकता. मैं आज प्रिया को सबकुछ बता दूंगा, कि जिसके लिए वो इतना सबकुछ करती हैं वो उसका हकदार ही नहीं. फिर उसका जो फैसला हो. लेकिन अब मैं इन दो नावों पर सफ़र नहीं कर सकता. जबकि मुझे पता हैं कि मेरी नाव कौन सी है. आज मैं प्रिया को हर बोझ से आजाद कर दूंगा. इन्हीं सब बातों को सोचते हुए राज अपने घर की तरफ  निकल पड़ा.
रास्तें में भी उसे न जाने कितने ख्याल आये. वो बस सोचता रहा कि कैसे वो हर बार प्रिया और उसकी चीजों को इग्नोर कर दिया करता था. यहाँ तक कि जब ऑफिस की तरफ से नैनीताल ट्रिप प्लान हुई जिसमें हर किसी को अपने पार्टनर के साथ जाना था. वहां पर भी मैंने प्रिया को छोड़कर अकेले जाना ज्यादा सही समझा. क्योंकि दुनिया वालों की नजरों में वो मेरी पत्नी थी, लेकिन मेरी नजरों में मेरा  पार्टनर सोनिया के अलावा कोई नहीं. इसीतरह एक बार जब मेरे सारे फ्रेंड घर पर खाना खाने के लिए आये तो सब प्रिया के हाथ के खाने की तारीफ किये जा रहें थे. खुद से ज्यादा किसी और के मुंह से अपनी बीवी के खाने की तारीफ मुझे थोड़ी जलन तो जरुर दे रही थी. लेकिन मैं करता भी क्या. जलन में मैंने खाना तक नहीं खाया और मेरे चेहरे का हाल प्रिया तुरंत समझ गई.

अपने आपको प्रिया का गुनाहगार समझता हुआ राज जब अपने फ्लैट की बिल्डिंग के पार्किंग एरिया में पहुंचा तो एक जानी पहचानी गाड़ी ने थोड़ी देर के लिए उसका ध्यान खींचा. लेकिन पश्चाताप की आग में जलता हुआ राज किसी भी चीज की परवाह किये बिना लिफ्ट एरिया में गया.
सलाम साहेब आज इतनी जल्दी. लिफ्ट के चौकीदार ने परवाह जताते हुए पूछा.
१२ वीं मंजिल. राज ने उसके सवाल को नजरअंदाज करते हुए बोला.
जी साहेब.
१२ वीं मंजिल पर लिफ्ट जैसे ही रुकी राज का दिल जोर जोर से धड़कने लगा. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था. अपने फ्लैट की मंजिल पर पहुँचकर उसे थोड़ा ख्याल उस कार का आया जो उसके बिल्डिंग के पार्किंग एरिया में खड़ी हुई थी. न जाने क्यों उसका दिल और जोर जोर से धड़कने लगा. अपनी ५ साल की शादी में राज आज पहली बार घर जल्दी आया था. और अब उसे अपने ही घर में जाने से डर लग रहा था. उसने डोर वेल बजाने की जगह अपने फ्लैट के पीछे के गेट से जाना ज्यादा सही समझा. इस समय राज किसी भी सोचने समझने की हालत में नहीं था. उसे जो समझ में आ रहा था वो वही कर रहा था. अपने ही घर में चोरों की तरह घुसने में राज को भी बहुत अजीब लग रहा था.
पीछे के दरवाजें से जब राज अन्दर आया तो देखा प्रिया कहीं नहीं है, फिर वो धीरे से अपने बेडरूम की तरफ गया. बेडरूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ था. जरा सी झलक देखते ही उसने तुरंत अपनी पीठ घुमा ली. उसकी आँखों ने जो देखा था उसे उसपर विश्वास नहीं हो रहा था. वो पूरी रफ्तार के साथ वापस मुड़ा और सीधे पार्किंग एरिया में खड़ी अपनी गाड़ी में आकर बैठ गया.
नहीं ये नहीं हो सकता, ये सब मेरे मन का बहम है, आज मैं कुछ ज्यादा ही ख्यालों में हूँ. राज मन ही मन बडबडाता हैं. जैसे ही वो गाड़ी के सामने की तरफ देखता है तो उसकी नज़र वही खड़ी जानी पहचानी गाड़ी पर पड़ती हैं.
ये तो राहुल की कार है. राहुल और प्रिया!!! ऐसा कैसे हो सकता हैं मेरा अपना दोस्त मेरी ही बीवी के साथ, मेरे ही घर के बेडरूम में ऐसे!! क्या राहुल इसी बजह से मुझे प्रिया को छोड़ने के लिए बोलता था.
और प्रिया!! वो तो इतनी पतिव्रता स्त्री थी, अब उसे क्या हुआ. शायद इसीलिए उसे आज दिन तक मेरे पास जाने का बुरा नहीं लगा. मेरी खुद की बीवी मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती है. राज के मन में न जाने ऐसे कितने ख्याल आ रहे थे. तभी उसकी नजर गाड़ी के अन्दर लगे शीशें पर पड़ी. खुद की नजरों से नज़र मिलाते ही शीशें में प्रतिविम्बित राज उससे बोलता है.
क्यों तुम्हें बुरा किस बात का लग रहा हैं. यही न कि प्रिया तुम्हारी बीवी है. बस! जिसे बीवी का दर्जा तुमने आज दिन तक नहीं दिया. और अचानक से तुम्हें उसका ख्याल आ गया की वो तुम्हारी बीवी है, तो वो ऐसा कैसे कर सकती है. और जो तुम इतने सालों से उसके साथ जो व्यवहार कर रहे हो. क्या वो सही है. तुमने कौन सा अपना पति धरम निभाया है. और आज भी तुम उसे गले लगाने नहीं बल्कि ये बताने के लिए आये थे कि तुम उसे छोड़कर आजाद करना चाहते हो. और उसकी ये आज़ादी तुम्हें हजम नहीं हुई. सच मानो तो राज तुम कितने खुदगर्ज हो, माना की तुम प्रिया के साथ खुश नहीं थे तो तुमने अपनी ख़ुशी सोनिया में ढूंड ली. और प्रिया के अकेलेपन पर तुम्हें तरस तक नहीं आया. और अब जब तुम्हें पता चला कि वो किसी और के साथ हैं. तो तुम्हें जलन होने लगी. खुश रहने का हक़ सिर्फ क्या तुम्हें ही है. अपने अन्दर की आवाज़ सुनकर राज एक राहत की सांस लेता है. और गाड़ी स्टार्ट करके निकल पड़ता हैं.
  






Sunday, May 8, 2016

HAPPY MOTHER'S DAY


कुछ है, वह क्या है मेरे पास, बस आपका एहसास,
कुछ हूँ, वह क्या हूँ मैं, बस आपका आशीर्वाद,
पाया मैंने हर जगह बस आपको चाहे धूप हो या बरसात,
नहीं चुका सकती उस प्यार को, जो दिया आपने मुझे अपार,
बस पाना है एक मुकाम, जो दे सके आपको ख़ुशी और नाम,
पाया है आपको माँ के रूप में, यह है मेरा सौभाग्य,
बस बनके रहना चाहती हूँ, आपकी परछाई चाहे जो हो हालात.....
you've seen me laugh, you've seen me cry...
And always you were there with me,
i may not have always said it,
But thanks and I LOVE YOU MUMMY...
HAPPY MOTHER'S DAY....

Thursday, February 25, 2016

इस हमाम में सब नंगे हैं

जो भी पिछले कुछ महीनों से देश के अन्दर हो रहा है. उससे न सिर्फ देश के आतंरिक बल्कि बाहरी परिवेश में भी बहुत फर्क पड़ रहा है. भारत की छवि किस रूप में व्याप्त हो रही है ये एक और गहन विषय बन रहा है. मैं यहाँ किसी मुद्दे को लेकर व्यक्तिगत व राजनैतिक सोच का परिचायक नहीं बन रही हूँ. इन सब बातों के बारे में जानते वक़्त आज जब मैं जाट आन्दोलन पर एक खबर देख रही थी, कि कैसे जाट आरक्षण आन्दोलन को व्यक्तिगत मामला बनाकर लोगों की जिंदगियां छीन ली गई. तभी भीड़ का हिस्सा एक व्यक्ति अपने साक्षात्कार में बोलता है की मनुष्य के अन्दर मानवता जैसी चीज जो खत्म हो रही है. सरकार को उसपर कोई योजना बनानी चाहिए. कि किस तरह से मनुष्य के अन्दर मानवता को जगाया जाये. कहने को तो ये जरा सी बात है लेकिन अगर हम सोचे तो ये जरा सी बात बहुत से सवाल खड़े कर जाती है. क्या वाकई हम लोगों के अन्दर से मानवता खत्म हो रही है?  वैसे अगर देखा जाये तो हां. जिस तरह एक भीड़ ने मार मार के एक व्यक्ति को मार ही डाला, जिस तरह एक भीड़ एक औरत को नंगा करके शहर में घुमाती है, जिस तरह एक दल ये फैसला करता है कि हम तुम्हें तभी वरी करेंगें जब तुम्हारी बीवी हम सबके साथ बारी बारी से सोये, और अब ये कैसा आन्दोलन है  कि उसमें आप लोगों के जीने की बजह ही छीन लो. ऐसा करके आप किसी व्यवस्था के खिलाफ़ नहीं बल्कि अपने ही खिलाफ़ लड़ रहे हैं. मानवता ने आज के  दौर में व्यक्तिगत लाभ का स्थान ले लिया. कोई भी कार्य कितना भी बुरा, अन्याय संगत या कितनी भी बड़ी सामाजिक हानि को लिए हो, यदि उससे व्यतिगत लाभ पहुँच रहा है. तो वो अच्छा ही है. मानवता का मुद्दा एक वैश्विक मुद्दा हैं. और ये हमारी व्यक्तिगत सोच और विकास पर भी निर्भर है. अपनी बुधिमत्ता का विकास हम किस ओर और किस दिशा में करना चाहते हैं. ये हम पर ही निर्भर हैं. और रही बात किसी पर दोष डालने की. तो इस हमाम में सब नंगे है. बाकि आप खुद ही समझदार है.

Wednesday, February 17, 2016

हमारी जिंदगी का अभिन्न अंग....

अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी को झेलते हुए, मैंने अपने घर वापसी की ओर रुख किया. रोज की तरह आज भी मेट्रो स्टेशन पर उतनी ही भीड़ थी. कतार में लगते हुए मैंने अपना एअर फ़ोन  लगाया और एफ एम सुनने लगी. मूल्यता मैं कभी भी विज्ञापन नहीं सुनती. अब इतने सारे चैनल्स है दिल्ली में तो विज्ञापन काहे सुना जाये. मेट्रो में घुसने की जद्दोजहद में मेरे कानों में एक आवाज़ आई. कृपया चैनल न बदले क्योंकि इस विज्ञापन का भुगतान आपके द्वारा दिए टैक्स से होता है. भाई टैक्स तो मै देती नहीं. लेकिन भीड़ की वजह से मैं अपना हाथ मोबाइल तक न पहुंचा पाई, और विज्ञापन शुरू  हो गया. जिसमे एक माँ बाप अपने बेटे से कहते है. कि हमने तुम्हारे लिए लड़की देखी है. २० से २५ लाख देने को तैयार है. तू कहे तो कल लड़की देखने चले. तो इसपर बेटा बोलता है. कि जब आपने पैसे के आधार पर तय ही कर लिया है. तो फिर लड़की से क्या फिर वो चाहे कैसी हो.
अरे बेटा! ये सब तो हम तुम्हारे लिए ही तो कर रहे हे.
नहीं, ये मेरे लिए नहीं है. कभी आपने सोचा है की एक बेटी का बाप किस तरह पैसे जुटाता है.
फिर एक संदेशवाहक सूचना. कि पढ़े लिखे लोगों को इसमें आगे आना चाहिए.
सच में??? मुझे इतना अजीव लगा ये विज्ञापन. हम न जाने कबसे बाल विवाह और दहेज़ को लेके लड़ रहे है. वैसे ये लड़ाई लड़ कौन रहा है मुझे ये भी नहीं पता. क्योंकि आज के समय में दहेज़ तो आपके स्टेटस का मुद्दा बन गया है. अब तो रेट फिक्स हो गया है. डिफेन्स में बन्दा है तो १० लाख, इंजीनियर हैं तो उसकी सैलरी के हिसाब से २०, २५ या ५० लाख कोई भी रकम हो सकती हैं. डॉ. का भी यही हाल है. और अगर बन्दा सरकारी अधिकारी है तो डिमांड करोड़ों में जाती है. जितना बड़ा पद और पैसा, उतना ही ज्यादा दहेज़. भाई वाह!!! हैं न मजे की बात. फिर ऐसे विज्ञापन दिखाके के क्या साबित कर रही है सरकार. और कौन है वो लड़का जो इस तरह की आशावादी बातें कर रहा हैं. इसपर जांच बिठाओ. अब ये मुद्दे इतने छोटे और आम हो गये हैं. कि कोई अब इनपर ध्यान ही नहीं देना चाहता. झूठ, भ्रष्टाचार, चापलूसी की तरह हमने इसे भी अपने अन्दर आत्मसात कर लिया हैं. अब हमारे हिसाब से ये चीजें गलत नहीं. अब गलत नहीं, तो कोई लड़ाई भी नहीं है.
मुझे एक और मजे की बात सुनने को मिली. अब लोग वर पक्ष को पार्टी कहते है. भाई वो तो बहुत बड़ी पार्टी है. उनके यहाँ  रिश्ता मतलब आप ५०-६०  लाख ऐसे ही रख लो. हम न जाने कबसे इसके खिलाफ होने को दर्शाते है. लेकिन ये बात कहीं नही गई कि आज भी ये पूरी तरह व्याप्त है. यहाँ तक कि इसका घेरा अब इतना बड़ा हो गया है. कि अब इसे कोई छोटा नही कर सकता.
बस  मुझे उन सब माँ बाप के लिए एक सुझाव सूझता है जो अपनी बेटियों की शादी करने के लिए जद्दोजहद करते है. वो ये कि शादी कोई बड़ी बात नहीं. पहले अपनी बेटियों को काबिल बनाओ, जिससे कि उन्हें किसी पर निर्भर होने की जरुरत न पड़े. जब वो खुद आत्म निर्भर होंगी तो अपनी जिंदगी के बारे में बेहतर फैसला करेंगी. आप उनका सहारा बनकर उनको बस आगे बढाओ. 

Saturday, February 13, 2016

प्यार एक अनुपम उपहार हैं.....

प्यार एक अनुपम उपहार है.... सही कह रहे है????? अरे आपके लिए तो हम सही कह रहे होंगे. क्योंकि इंसान जब प्यार में होता है, तो उसे हर चीज जो प्यार को दर्शाती है सही ही लगती है. आपका पार्टनर आपको कितना भी चूतिया बनाये आप ख़ुशी ख़ुशी बनके लिए तैयार रहते है.  गर न भी बनाये तब भी आप बने रहते है क्योंकि आप उस प्रवृत्ति से निकल ही नही पाते. जब आपके अंतर्मन को चटाक का झटका लगता है. तब आप पाते है कि जिस चूतियापन्ती में आप पड़े हुए थे, वो तो कभी था ही नही. बस सामाजिक फैशन के शिकार थे आप. चलो ये रही बात आपकी, अब जिस सामाजिक फैशन में आप बंधे थे वो है क्या?  भाई है तो ऐसा कुछ नहीं जिस पर बात हो. अब दुनिया कर रही है तो हम भी कर लेते है. बात दरअसल ये है कि दो प्रतिद्वंदी लोगों के मध्य जब तोहफा, बातों, मिलन का सिलसिला शुरू हो जाता है उसे कहते है लव. अब ये होता कैसे हे तो सुनिए...
अरे यार तूने वो लड़की देखी?
कौन?
अरे वही जो फाइन आर्ट में आयी है.
भाई तू फाइन आर्ट वाली पर भी लाइन मारने लगा.
हां, क्योंकि मै नार्मल हूँ...
मतलब क्या है इससे..
कुछ नही, वैसे तूने शायद ध्यान नहीं दिया उस पर.. रुक अभी आती होगी.. रोज इसी टाइम निकलती है. आज सोच रहा हूँ बोल ही दूँ. भाई आ गई, आ गई....
जा आल द बेस्ट...
(थोड़ी देर बाद)
भाई क्या हुआ???
होना क्या था, कल आ रही है सीसीडी...
भाई तेरा सही है...
फिर बस कुछ दिनों का सिलसिला सोनू, बाबू, खाना खाया की नहीं... उसके बाद सबकी कहानी एक सी.. आजकल तो एक चीज और हो गई है.. अगर आपका बॉयफ्रेंड या आपकी गर्लफ्रेंड नहीं है.. तो लोग आपको ऐसी हीनभावना से देखेंगे कि आपको लगने लगेगा कि आप इस दुनिया के है ही.. एक बात से और बचके रहियेगा की कही आप उस श्रेणी के तो नहीं. जिसपर कोर्ट में बवाल मचा हुआ है..
वैसे आज का दिन तो त्यौहार है.. सबसे बड़ा पर्व. और आज तो इंटरनेशनल छुट्टी भी है.. फिर क्या करो ऐश..

Monday, January 11, 2016

एक सच्चे दिल की तलाश है

एक सच्चे दिल की तलाश है,
है मुख़्तसर लेकिन खास है.
बूंद बूंद से जैसे घड़ा भरता है,
पल पल दिल उसी तरह मचलता है.
न जगजाहिर है न राज है,
एक सच्चे दिल की तलाश है.
ऊंचे पर्वत लम्बा रास्ता,
घना अँधेरा और भी बड़ा.
एक सुनहरे सवेरे की आस है,
एक सच्चे दिल की तलाश है.
दुनिया बहुत फरेवी है,
न तेरी न मेरी है है.
बस मरती मिटती लाश है,
एक सच्चे दिल की तलाश है.
रिश्तों की गांठ की गठरी में,
सब बंधे है एक पटरी में.
न रुक सकती न चलने को राज़ी ये सांस है
एक सच्चे दिल की तलाश है.
ऊपर मन में सब खुश है,
अन्दर की न जाने कोई.
क्यों फिर भी ये उल्लास है,
एक सच्चे दिल की तलाश है.
है मुख़्तसर लेकिन खास है....
       
             सोनम राठौर