Wednesday, September 6, 2017

औरत ही #Female

वो घन्टों तक चलती है लाने को थोड़ा सा पानी,
बुझा सके जिससे वो अपनों की प्यास.
वो छोड़ देती है घर अपना, 
निभाने को जिम्मेदारियां परिवार की.
बिनती है टुकड़ा टुकड़ा बनाने को फिर से एक नया घर, 
जो उजड़ा था पिछली रात को,
थकती नहीं है कभी वो अपनी जिम्मेदारियों से.
क्या बनाओगे उसे, 
वो दाता भी है, दासी भी, 
नेता भी है  और सेवक भी.
वो कोई और नहीं, है औरत ही.