Thursday, February 25, 2016

इस हमाम में सब नंगे हैं

जो भी पिछले कुछ महीनों से देश के अन्दर हो रहा है. उससे न सिर्फ देश के आतंरिक बल्कि बाहरी परिवेश में भी बहुत फर्क पड़ रहा है. भारत की छवि किस रूप में व्याप्त हो रही है ये एक और गहन विषय बन रहा है. मैं यहाँ किसी मुद्दे को लेकर व्यक्तिगत व राजनैतिक सोच का परिचायक नहीं बन रही हूँ. इन सब बातों के बारे में जानते वक़्त आज जब मैं जाट आन्दोलन पर एक खबर देख रही थी, कि कैसे जाट आरक्षण आन्दोलन को व्यक्तिगत मामला बनाकर लोगों की जिंदगियां छीन ली गई. तभी भीड़ का हिस्सा एक व्यक्ति अपने साक्षात्कार में बोलता है की मनुष्य के अन्दर मानवता जैसी चीज जो खत्म हो रही है. सरकार को उसपर कोई योजना बनानी चाहिए. कि किस तरह से मनुष्य के अन्दर मानवता को जगाया जाये. कहने को तो ये जरा सी बात है लेकिन अगर हम सोचे तो ये जरा सी बात बहुत से सवाल खड़े कर जाती है. क्या वाकई हम लोगों के अन्दर से मानवता खत्म हो रही है?  वैसे अगर देखा जाये तो हां. जिस तरह एक भीड़ ने मार मार के एक व्यक्ति को मार ही डाला, जिस तरह एक भीड़ एक औरत को नंगा करके शहर में घुमाती है, जिस तरह एक दल ये फैसला करता है कि हम तुम्हें तभी वरी करेंगें जब तुम्हारी बीवी हम सबके साथ बारी बारी से सोये, और अब ये कैसा आन्दोलन है  कि उसमें आप लोगों के जीने की बजह ही छीन लो. ऐसा करके आप किसी व्यवस्था के खिलाफ़ नहीं बल्कि अपने ही खिलाफ़ लड़ रहे हैं. मानवता ने आज के  दौर में व्यक्तिगत लाभ का स्थान ले लिया. कोई भी कार्य कितना भी बुरा, अन्याय संगत या कितनी भी बड़ी सामाजिक हानि को लिए हो, यदि उससे व्यतिगत लाभ पहुँच रहा है. तो वो अच्छा ही है. मानवता का मुद्दा एक वैश्विक मुद्दा हैं. और ये हमारी व्यक्तिगत सोच और विकास पर भी निर्भर है. अपनी बुधिमत्ता का विकास हम किस ओर और किस दिशा में करना चाहते हैं. ये हम पर ही निर्भर हैं. और रही बात किसी पर दोष डालने की. तो इस हमाम में सब नंगे है. बाकि आप खुद ही समझदार है.

Wednesday, February 17, 2016

हमारी जिंदगी का अभिन्न अंग....

अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी को झेलते हुए, मैंने अपने घर वापसी की ओर रुख किया. रोज की तरह आज भी मेट्रो स्टेशन पर उतनी ही भीड़ थी. कतार में लगते हुए मैंने अपना एअर फ़ोन  लगाया और एफ एम सुनने लगी. मूल्यता मैं कभी भी विज्ञापन नहीं सुनती. अब इतने सारे चैनल्स है दिल्ली में तो विज्ञापन काहे सुना जाये. मेट्रो में घुसने की जद्दोजहद में मेरे कानों में एक आवाज़ आई. कृपया चैनल न बदले क्योंकि इस विज्ञापन का भुगतान आपके द्वारा दिए टैक्स से होता है. भाई टैक्स तो मै देती नहीं. लेकिन भीड़ की वजह से मैं अपना हाथ मोबाइल तक न पहुंचा पाई, और विज्ञापन शुरू  हो गया. जिसमे एक माँ बाप अपने बेटे से कहते है. कि हमने तुम्हारे लिए लड़की देखी है. २० से २५ लाख देने को तैयार है. तू कहे तो कल लड़की देखने चले. तो इसपर बेटा बोलता है. कि जब आपने पैसे के आधार पर तय ही कर लिया है. तो फिर लड़की से क्या फिर वो चाहे कैसी हो.
अरे बेटा! ये सब तो हम तुम्हारे लिए ही तो कर रहे हे.
नहीं, ये मेरे लिए नहीं है. कभी आपने सोचा है की एक बेटी का बाप किस तरह पैसे जुटाता है.
फिर एक संदेशवाहक सूचना. कि पढ़े लिखे लोगों को इसमें आगे आना चाहिए.
सच में??? मुझे इतना अजीव लगा ये विज्ञापन. हम न जाने कबसे बाल विवाह और दहेज़ को लेके लड़ रहे है. वैसे ये लड़ाई लड़ कौन रहा है मुझे ये भी नहीं पता. क्योंकि आज के समय में दहेज़ तो आपके स्टेटस का मुद्दा बन गया है. अब तो रेट फिक्स हो गया है. डिफेन्स में बन्दा है तो १० लाख, इंजीनियर हैं तो उसकी सैलरी के हिसाब से २०, २५ या ५० लाख कोई भी रकम हो सकती हैं. डॉ. का भी यही हाल है. और अगर बन्दा सरकारी अधिकारी है तो डिमांड करोड़ों में जाती है. जितना बड़ा पद और पैसा, उतना ही ज्यादा दहेज़. भाई वाह!!! हैं न मजे की बात. फिर ऐसे विज्ञापन दिखाके के क्या साबित कर रही है सरकार. और कौन है वो लड़का जो इस तरह की आशावादी बातें कर रहा हैं. इसपर जांच बिठाओ. अब ये मुद्दे इतने छोटे और आम हो गये हैं. कि कोई अब इनपर ध्यान ही नहीं देना चाहता. झूठ, भ्रष्टाचार, चापलूसी की तरह हमने इसे भी अपने अन्दर आत्मसात कर लिया हैं. अब हमारे हिसाब से ये चीजें गलत नहीं. अब गलत नहीं, तो कोई लड़ाई भी नहीं है.
मुझे एक और मजे की बात सुनने को मिली. अब लोग वर पक्ष को पार्टी कहते है. भाई वो तो बहुत बड़ी पार्टी है. उनके यहाँ  रिश्ता मतलब आप ५०-६०  लाख ऐसे ही रख लो. हम न जाने कबसे इसके खिलाफ होने को दर्शाते है. लेकिन ये बात कहीं नही गई कि आज भी ये पूरी तरह व्याप्त है. यहाँ तक कि इसका घेरा अब इतना बड़ा हो गया है. कि अब इसे कोई छोटा नही कर सकता.
बस  मुझे उन सब माँ बाप के लिए एक सुझाव सूझता है जो अपनी बेटियों की शादी करने के लिए जद्दोजहद करते है. वो ये कि शादी कोई बड़ी बात नहीं. पहले अपनी बेटियों को काबिल बनाओ, जिससे कि उन्हें किसी पर निर्भर होने की जरुरत न पड़े. जब वो खुद आत्म निर्भर होंगी तो अपनी जिंदगी के बारे में बेहतर फैसला करेंगी. आप उनका सहारा बनकर उनको बस आगे बढाओ. 

Saturday, February 13, 2016

प्यार एक अनुपम उपहार हैं.....

प्यार एक अनुपम उपहार है.... सही कह रहे है????? अरे आपके लिए तो हम सही कह रहे होंगे. क्योंकि इंसान जब प्यार में होता है, तो उसे हर चीज जो प्यार को दर्शाती है सही ही लगती है. आपका पार्टनर आपको कितना भी चूतिया बनाये आप ख़ुशी ख़ुशी बनके लिए तैयार रहते है.  गर न भी बनाये तब भी आप बने रहते है क्योंकि आप उस प्रवृत्ति से निकल ही नही पाते. जब आपके अंतर्मन को चटाक का झटका लगता है. तब आप पाते है कि जिस चूतियापन्ती में आप पड़े हुए थे, वो तो कभी था ही नही. बस सामाजिक फैशन के शिकार थे आप. चलो ये रही बात आपकी, अब जिस सामाजिक फैशन में आप बंधे थे वो है क्या?  भाई है तो ऐसा कुछ नहीं जिस पर बात हो. अब दुनिया कर रही है तो हम भी कर लेते है. बात दरअसल ये है कि दो प्रतिद्वंदी लोगों के मध्य जब तोहफा, बातों, मिलन का सिलसिला शुरू हो जाता है उसे कहते है लव. अब ये होता कैसे हे तो सुनिए...
अरे यार तूने वो लड़की देखी?
कौन?
अरे वही जो फाइन आर्ट में आयी है.
भाई तू फाइन आर्ट वाली पर भी लाइन मारने लगा.
हां, क्योंकि मै नार्मल हूँ...
मतलब क्या है इससे..
कुछ नही, वैसे तूने शायद ध्यान नहीं दिया उस पर.. रुक अभी आती होगी.. रोज इसी टाइम निकलती है. आज सोच रहा हूँ बोल ही दूँ. भाई आ गई, आ गई....
जा आल द बेस्ट...
(थोड़ी देर बाद)
भाई क्या हुआ???
होना क्या था, कल आ रही है सीसीडी...
भाई तेरा सही है...
फिर बस कुछ दिनों का सिलसिला सोनू, बाबू, खाना खाया की नहीं... उसके बाद सबकी कहानी एक सी.. आजकल तो एक चीज और हो गई है.. अगर आपका बॉयफ्रेंड या आपकी गर्लफ्रेंड नहीं है.. तो लोग आपको ऐसी हीनभावना से देखेंगे कि आपको लगने लगेगा कि आप इस दुनिया के है ही.. एक बात से और बचके रहियेगा की कही आप उस श्रेणी के तो नहीं. जिसपर कोर्ट में बवाल मचा हुआ है..
वैसे आज का दिन तो त्यौहार है.. सबसे बड़ा पर्व. और आज तो इंटरनेशनल छुट्टी भी है.. फिर क्या करो ऐश..