Wednesday, February 17, 2016

हमारी जिंदगी का अभिन्न अंग....

अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी को झेलते हुए, मैंने अपने घर वापसी की ओर रुख किया. रोज की तरह आज भी मेट्रो स्टेशन पर उतनी ही भीड़ थी. कतार में लगते हुए मैंने अपना एअर फ़ोन  लगाया और एफ एम सुनने लगी. मूल्यता मैं कभी भी विज्ञापन नहीं सुनती. अब इतने सारे चैनल्स है दिल्ली में तो विज्ञापन काहे सुना जाये. मेट्रो में घुसने की जद्दोजहद में मेरे कानों में एक आवाज़ आई. कृपया चैनल न बदले क्योंकि इस विज्ञापन का भुगतान आपके द्वारा दिए टैक्स से होता है. भाई टैक्स तो मै देती नहीं. लेकिन भीड़ की वजह से मैं अपना हाथ मोबाइल तक न पहुंचा पाई, और विज्ञापन शुरू  हो गया. जिसमे एक माँ बाप अपने बेटे से कहते है. कि हमने तुम्हारे लिए लड़की देखी है. २० से २५ लाख देने को तैयार है. तू कहे तो कल लड़की देखने चले. तो इसपर बेटा बोलता है. कि जब आपने पैसे के आधार पर तय ही कर लिया है. तो फिर लड़की से क्या फिर वो चाहे कैसी हो.
अरे बेटा! ये सब तो हम तुम्हारे लिए ही तो कर रहे हे.
नहीं, ये मेरे लिए नहीं है. कभी आपने सोचा है की एक बेटी का बाप किस तरह पैसे जुटाता है.
फिर एक संदेशवाहक सूचना. कि पढ़े लिखे लोगों को इसमें आगे आना चाहिए.
सच में??? मुझे इतना अजीव लगा ये विज्ञापन. हम न जाने कबसे बाल विवाह और दहेज़ को लेके लड़ रहे है. वैसे ये लड़ाई लड़ कौन रहा है मुझे ये भी नहीं पता. क्योंकि आज के समय में दहेज़ तो आपके स्टेटस का मुद्दा बन गया है. अब तो रेट फिक्स हो गया है. डिफेन्स में बन्दा है तो १० लाख, इंजीनियर हैं तो उसकी सैलरी के हिसाब से २०, २५ या ५० लाख कोई भी रकम हो सकती हैं. डॉ. का भी यही हाल है. और अगर बन्दा सरकारी अधिकारी है तो डिमांड करोड़ों में जाती है. जितना बड़ा पद और पैसा, उतना ही ज्यादा दहेज़. भाई वाह!!! हैं न मजे की बात. फिर ऐसे विज्ञापन दिखाके के क्या साबित कर रही है सरकार. और कौन है वो लड़का जो इस तरह की आशावादी बातें कर रहा हैं. इसपर जांच बिठाओ. अब ये मुद्दे इतने छोटे और आम हो गये हैं. कि कोई अब इनपर ध्यान ही नहीं देना चाहता. झूठ, भ्रष्टाचार, चापलूसी की तरह हमने इसे भी अपने अन्दर आत्मसात कर लिया हैं. अब हमारे हिसाब से ये चीजें गलत नहीं. अब गलत नहीं, तो कोई लड़ाई भी नहीं है.
मुझे एक और मजे की बात सुनने को मिली. अब लोग वर पक्ष को पार्टी कहते है. भाई वो तो बहुत बड़ी पार्टी है. उनके यहाँ  रिश्ता मतलब आप ५०-६०  लाख ऐसे ही रख लो. हम न जाने कबसे इसके खिलाफ होने को दर्शाते है. लेकिन ये बात कहीं नही गई कि आज भी ये पूरी तरह व्याप्त है. यहाँ तक कि इसका घेरा अब इतना बड़ा हो गया है. कि अब इसे कोई छोटा नही कर सकता.
बस  मुझे उन सब माँ बाप के लिए एक सुझाव सूझता है जो अपनी बेटियों की शादी करने के लिए जद्दोजहद करते है. वो ये कि शादी कोई बड़ी बात नहीं. पहले अपनी बेटियों को काबिल बनाओ, जिससे कि उन्हें किसी पर निर्भर होने की जरुरत न पड़े. जब वो खुद आत्म निर्भर होंगी तो अपनी जिंदगी के बारे में बेहतर फैसला करेंगी. आप उनका सहारा बनकर उनको बस आगे बढाओ. 

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