Tuesday, January 10, 2017

महिलाओं की इज्जत को उनकी योनी में किसने रखा? #Kamla_Bhasin


वैसे तो महिलाओं की सुरक्षा आज के समय में सबसे अहम् मुद्दा है. लोग इसके बारें में खुलके बात करते हैं. हम महिलओं को कैसे सुरक्षित रख सकते है इसके तरीके बताते है. महिलओं को अपनी सुरक्षा को लेकर क्या क्या करना चाहिए ये भी बताते है. हमारे इस बुद्धिजीवी समाज में न जाने ऐसे कितने लोग मिल जायेंगे. लेकिन बंगलौर में घटित घटना सबकी असलियत को उजागर करती एक तस्वीर है. ये तो उस जगह की बात है जो बुद्दिजीवी के क्षेत्र में अपना एक स्थान रखता है. अब सोचिये न जाने कितनी ऐसी जगह हैं जो हर तरह से पिछड़ी है ऐसे में वहां क्या हो रहा है इसकी तो किसी को खबर तक नहीं है. न ही उनकी आवाज को कोई चेहरा मिल पा रहा है. ऐसे में इसका मापन कैसे हो. 

लाहौर में अभी हाल ही में पंजाब सेफ सिटीज अथॉरिटी और पंजाब कमीशन ऑन द स्टेटस ऑफ़ वोमेन ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक एप्प बनाई जिसमें वो ये भी अंकित कर सकती है कि कौन सी जगह उनके लिए खतरनाक है. चलो ये तो लाहौर की बात रही. लेकिन फिर भी, है तो महिलओं की सुरक्षा को लेकर. वैसे मेरी बात का तात्पर्य यही है कि जब इतनी बातें, सेमिनार, वर्कशॉप होते है. यहाँ तक की महिलाओं की सुरक्षा कैसे की जाये इस पर डिबेट भी होता है. फिर भी परिणाम स्वरुप हमारे हाथ में लगता क्या है? अब जब एप्प ऐसी बनाई जा रही है, जिसमे हम जगह अंकित कर सकते है कि कौन सी खतरनाक है. तो बात यहाँ ये उठती है. कि वो जगह खतरनाक क्यों है? और अगर इतनी खतरनाक है तो महिलाओं को वहां जाने की जरुरत क्या है? तो किसी एप्प में अगर ये बात आ गई है कि जगह कौन सी खतरनाक है. तो ऐसे में उन जगहों का ब्यौरा बनाकर वो क्यों खतरनाक है इस पर कार्य करना चाहिए. 

ये तो रही एक बात. अब बात दूसरी ये है कि हम कितना भी अपनी महिलाओं के लिए सुरक्षा मुहैया करा दे. लेकिन उनके खिलाफ़ वारदात कम नहीं होती. ऐसे में बात ये सामने आती हैं कि कोई भी हेल्पिंग नंबर और एप्प तब तक कार्य नहीं करेगा जब तक हम एक निश्चित सजा निर्धारित नहीं करते. और सजा के साथ एक समय सीमा भी. क्योंकि जो मैंने देखा है पिछले दिनों में वो ये है कि अब हमलावरों के अन्दर डर नहीं रहा हैं किसी भी घटना को करने से पहले वो परिणामों के बारें में नहीं सोचते. अब उनके अन्दर एक अजीब सी बेचैनी है जो उनके सोचने समझने की शक्ति को उस पल के लिए खत्म कर देती है. दूसरी बात की उनकी परवरिश किस माहौल में हुई है. जहाँ उनके अन्दर किसी भी चीज के लिए सोचने समझने की शक्ति उत्पन्न नहीं होती. व कुछ ऐसी सोच वाले भी होते है जिनके लिए महिला सिर्फ उपभोग की वस्तु है. उससे अधिक अगर उसने कदम बढ़ाएं तो उसके कदम को वही कुचल दिया जाता है. हमें आज महिलाओं के लिए सुरक्षित समाज से ज्यादा जो पीड़ित महिलाएं है उनके लिये एक बेहतर समाज बनाने की जरुरत है. क्योंकि हमेशा घर से निकलने से पहले उनके मन में ये ख्याल तो आता ही है कि कही कुछ हो गया तो. लेकिन उससे भी अधिक डर उन्हें ये विचार करता है कि वो किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं बचेंगी. व समाज उनके बारें में क्या सोचेगा. तो डर उन्हे घटना का नहीं बल्कि घटना के बाद के परिणामों का हैं. जो हम उन्हें देते है. 

अपराधी तो अपराध करके चला जाता है. लेकिन उसके अपराध की सजा हम महिलाओं को देते है. सबसे पहला जो विचार आता है कि उसकी इज्जत लुट गई. तो यहां मुझे 'कमला भसीन' जी की एक बात याद आती है कि महिलाओं की इज्ज़त को उनकी योनि में किसने रखा। इज्जत का मतलब क्या होता हैं?  जबकि इज्ज़त से ज़्यादा उसके आत्मसम्मान के बारें में कोई बात क्यों नहीं करता,  कोई उसकी इच्छा के विरुद्ध जो अपराध हुआ है उसके बारें में बात क्यों नहीं करता, कोई ये बात क्यों नहीं करता कि उस पीड़िता को कैसे समाज में सम्मान से रहने दिया जाये. अगर हम ऐसा समाज बनाने में सफल हो गये, जहाँ दोषी को दोषी ही माना जाये, पीड़िता को सम्मान से जीने दिया जाये. तो महिलाओं के अन्दर ये डर कि समाज क्या सोचेगा नहीं रहेगा. और दोषियों की प्रवत्ति, की इनको सबक सिखाना चाहिए वो भी कम होगी. और शायद सम्मान के साथ महिलाओं के अन्दर इन अपराधों से लड़ने की ताकत आ जाये. और उनकी इस ताकत को देखकर अपराधी अपराध करने से पहले १० बार सोचें. क्योंकि महिलाएं सशक्त हैं. वो अपना अच्छा बुरा अच्छे से जानती है. बस उनके इस सशक्तिकरण को समाज में जगह दिलवानी हैं. ये सब कुछ कल्पनायें है जो किसी किसी के समझ से तो परे है क्योंकि अब हमारी प्रवत्ति सोचने समझने से हटकर हमलावर हो गई है. वो कहते है न डूबते को तिनके का सहारा और एक चिंगारी आग लगा देती है. बस अब हम यही कर रहे है. तिनका मिलता नहीं और चिंगारियां तो आये दिन आग लगाती रहती है.