Wednesday, December 3, 2014

औरत

                                          औरत

औरत क्या हैं? क्या वह देवी हैं! एक अदना सा शरीर है या मॉस का बस एक लुथदा. उसका अस्तित्व क्या हैं? क्यों हमेशा उसका अस्तित्व बेटी, बहन, बीवी, माँ बनकर ही आँका जाता हैं? क्या वह सिर्फ एक औरत नही रह सकती? क्या औरत होना कोई श्राप है, जो उसपर हमेशा जहमते लगाई जाती है. क्यों औरत को हमेशा बांधे रखा जाता है कभी लाज शर्म की बेड़ियों में, कभी इज्जत की धार पर. क्यों हमेशा उसे  बेबुनियादी जामा पहनाकर लोगों से रूबरू कराया जाता है. क्यों औरत का अस्तित्व एक औरत बनकर नही रखा जा सकता? क्यों हमेशा उसे एक सहारे की जरुरत होती है, फिर चाहे वो सहारा उसके लिए जिल्लत बन जाये.क्यों इज्जत और आबरू की धरोहर औरतों को ही सौपी जाती है, ताकि कोई भी आके उसे रौंद सके. ऐसे सवालात हर उस औरत के मन में बार बार उमड़ते होंगे, जो जंजीरों की बेड़ियों में इस कदर फंसी हुई हैं कि उसकी आवाज सुनने वाला भी उसे कोई नजर नहीं आता होगा. यही हालत होती हैं एक औरत की जब उससे उसके सारे  सहारे छीन  लिए जाते है, फिर तो वह कहीं की नही रहती. द्रोपदी को क्यों कृष्णा भगवान् की जरुरत आन पड़ी थी, क्योंकि वह औरत थी. हम चाहे कितनी भी बाते कर ले नारी सशक्तिकरण को लेकर होना कुछ नही है. क्योकि भुगतना हमेशा औरत को ही पड़ता हैं. हर तरह के कसीदे उस पर ही लगाये जाते हैं. कब तक  ऐसा चलेगा और कब वो समय आएगा जब औरत को उसके होने का एहसास होंगा. उसे यह एहसास होगा की उसका भी कोई अस्तित्व हैं. उसे किसी के सहारे की जरुरत नही हैं. वह रह सकती है जैसे उसे रहना हैं, व उसे किसी की नहीं बल्कि सबको उसकी जरुरत हैं. कब??????????

कब वो दिन आएगा. उस दिन का आना एक दिवास्वप्न की तरह लगता हैं ....