बहुत अंतर है कल के आज के और कल के
भारत में
कल जब हम साथ बैठते थे, तो
बातें होती थी आपस की, कुछ हमारी कुछ आपकी।
आज के दौर में हम बैठते जरूर हैं लेकिन जिद
होती है खुद की सुनाने की, अब कल का दौर और ही होगा जब बैठके होंगी सिर्फ दिखावे की।
कल जब हमारी किसी से
लड़ाई होती थी, तो आ जाते थे आसपास के लोग, झगड़ा सुलझाने को
आज लड़ाइयाँ कराई ही
जाती है आसपास के लोगों के द्वारा
फिर एक कल होगा, जब परवाह नहीं होगी किसी को किसी के मरने की।
कल जहां लड़ाइयों के
मुद्दे थे शिक्षा, आज़ादी, बेरोजगारी
वही आज हम मंदिर
मस्जिद में ही सिमटे हुये हैं
और एक कल होगा जब
लड़ाई ही मुद्दा होगा।
कल त्योहारों में एक
मिठास थी अपनेपन की
आज वो कड़वाहट में
बदल गई और एक कल होगा जब किस्से सुने जाएंगे किसी सोशल मीडिया
प्लैटफ़ार्म पर कि, एक था त्योहार होली का।
कल जहां सब दोस्त थे, किसी अनजाने को भी हम अपना बनाकर शरण देते थे,
आज दोस्त ही अजनबी
हो गए है, ईर्ष्या द्वेष ने सबको अलग कर दिया है
और एक कल होगा, जब दोस्ती के नाम पर सोशल मीडिया का फैला हुआ जाल होगा,
जहां मन का द्वेष भी
एक लाइक तो कर ही देगा।
बदलाव प्रकृति का नियम है तो क्या हुआ, कि बदलते
भारत में प्रकृति ही न रहे, न सुनाई दे वो दर्द की आवाज़ जो एक मासूम सी बच्ची ने दी
होगी जब वो फसी होगी किसी दरिन्दे के पंजों में,
तो क्या हुआ अगर मिल
जाएंगे और भारत के भविष्य चौराहों पर हाथ फैलाये हुये, तो क्या हुआ गर और बढ़ जाएगा ऊंच नीच का फासला, क्या हुआ गर सैकड़ों बेरोजगार भीड़ बनकर मार देंगे किसी एक और निहत्थे को
धर्म के नाम पर।
अब बदलना तो है ही, तो फिर बदलने दो आज, कल और कल के भारत को।