Monday, September 7, 2015

लाइफ इन अ मेट्रो

लाइफ इन अ मेट्रो.......

कहते है की नया शहर आपके लिए न जाने कितनी नयी चीजें लेकर आता है... नयी जगह, नया माहौल, नये लोग, बगैरह बगैरह... मेरे लिए भी ये नया शहर कुछ एक टेंशन और बहुत सारी ख्वाहिशें लेकर आया हैं. ख्वाहिशें!!! आज़ादी से जीने की, अपने पैरों पर खड़े होने की. पहला दिन तो ठीक था लेकिन उसके बाद जब मैंने पहला कदम अकेले बाहर निकाला तो it’s quite interesting but lot’s of tension... वैसे एक बात तो हैं मेट्रो सिटीज के बारे में, आप यहाँ खो नहीं सकते. रास्ता तो मिल ही जाता हैं. और फिर ये आप पर निर्भर करता है की आप खोने में विश्वास रखते हैं या रास्ता ढूढने में. मेरे साथ पहले ही दिन ऐसी बहुत सी चीजे हुई जिससे मैं कन्फर्म हो गई, कि बिट्टा ये शहर तुम्हारे लिए परफेक्ट हैं. मैं तो परेशान हो गई थी सबकी नजरों से घर पर. और यहाँ किसी को किसी से मतलब ही नही हैं, लेकिन इसका ये भी मतलब नहीं है कि आपकी कोई मदद भी नही करेगा. आप एक से बोलिए चार होंगे. specially यूथ उनके लिए छोटा बड़ा कोई फर्क नही. कहते हैं कि लड़कियों के लिए बड़े शहर सेफ नही है. गलत.... इससे ज्यादा सेफ कोई और जगह नहीं होगी. जितनी आत्मनिर्भर यहाँ की लड़कियां हैं अगर उतनी पूरे भारत की ५% ही हो जाये तो फिर स्थिति ही बदल जाये. सुन्दर दिखना, कैसे कपड़े पहनना वो सब इन चीजों से ऊपर उठ गई हैं. उनकी सुन्दरता उनकी आत्मनिर्भरता से छलकती हैं, फिर उन्होंने जो भी ऊपरी लिबास डाला हो. मैं बहुत खुश हूँ कि आज मैं यहां का हिस्सा हूं. बस ये शहर मुझे भी धीरे धीरे अपना ले फिर सब सेट हैं.....