Wednesday, August 19, 2020

सरकार और विभाग

सरकार और विभाग दोनों के कार्य करने के तरीके, कार्य करने वाले लोग, उनका उद्देश्य, उनकी मानसिक सोच सब बहुत ही अलग होता है। जबकि ये दोनों  ही सिक्के के वो पहलू है जिन्हे रहना हमेशा साथ ही है, लेकिन इनका अस्तित्व एक समय में एक ही पहलू का होता है। 

सरकार और विभाग के लोगों में जब इस तरह का अंतर होगा तो क्या आपको लगता है कि इनमें सामंजस्य के साथ कार्य करने की क्षमता होगी। विभागीय व्यक्ति इतनी मेहनत से पढ़ लिखकर आता हैं और नौकरी लगते ही उसका एक परिश्रम और जुड़ जाता है कि नौकरी को बचाना है। शायद यह डर उसे खुलकर अपनी बौद्धिक क्षमता से कार्य करने का साहस नहीं दे पाता, जो कुछ करते भी है उनका हाल भी ऐसा हो जाता है कि एक समय के बाद वो भी हाथ जोड़कर खड़े हो जाते है। रही सरकार तो इन लोगों से तो अपेक्षा ही नहीं की जा सकती, क्योंकि इनका भी अलग माइंड सेट है कि बस 5 साल की सरकार है तो वह सत्ता के नशे में ही बने रहते है। अगर कोई सत्ताधारी अच्छा कार्य करता है तो क्या अगले चुनाव में जनता उसका वहिष्कर करेंगी? मुझे तो नहीं लगता है। हाँ, ये जरूर है कि इसपर एक शोध किया जा सकता है।

जिस देश में चुनाव के समय वोट ही 50 प्रतिशत पड़ते है तो आप बाकी के 50 प्रतिशत को भी बहुमत में शामिल करना अलग बात है। आज के समय में एक आम नागरिक और एक वोटर दोनों की सोच और उनकी बातों में बहुत अंतर है। अब हर मुद्दा वोटर बनाम नागरिक हो रहा है।

खैर बात यहाँ सरकार और विभाग की है, अभी इतने मुश्किल दौर से पूरा विश्व गुजर रहा है, ऐसे में सरकार को चाहिए कि वो विभागों से सामंजस्य बिठाये, एक सत्ताधारी न होकर एक आम इंसान की तरह सोचे और अपने विभागीय सदस्यों को भरोसा दिलाये कि कुछ भी हो, हम आपके साथ है। क्योंकि जैसा माहौल बन रहा है और बनारस में चिकित्सा अधिकारियों के इस्तीफ़े के बाद शायद और भी बने, कि अगर एक साथ विभागीय लोगों ने इस्तीफा दे दिया तो क्या सरकार के पास बैक अप प्लान है?