Friday, March 6, 2015

आज फिर

                                                       आज फिर 

आज फिर मेरी नजरें शीशे में शर्मा गईं,
आज फिर किसी की यादें एहसास नया जगा गईं,
आज फिर से इच्छाओं ने नयी उड़ान भरी हैं,
आज फिर रोने में हसने की लड़ी हैं,
आज फिर दर्द में चैन का आलम हैं,
आज फिर धूप में ठण्ड का मौसम हैं,
आज फिर मजबूरियों ने उनको बुलाया हैं,
और उन्हें भी मेरे होने का एहसास दिलाया हैं,
मुझे ख्याल ही नहीं रहा अपनी बदकिस्मती का,
कि आज फिर उन्होंने मेरे ऊपर एहसान दिखाया हैं.