Friday, February 13, 2015

प्रेम

                                               प्रेम

कहते है प्रेम एक ऐसा शब्द है जो सदियों से चला आ रहा हैं. आज भी हम किसी न किसी रूप में प्रेम को अपने अन्दर पाते हैं, प्रेम को दो व्यक्तियों से परिभाषित नहीं किया जा सकता. चाहे माँ-बाप के प्रति, पुत्र-पुत्री का प्रेम, भाई-बहन का प्रेम या युवक युवती का प्रेम. हमारे पुरानों में राधा कृष्णा का प्रेम सर्वोपरी माना जाता हैं, किन्तु आज के युग में ऐसा प्रेम सिर्फ कहानियों में ही रह गया हैं. समय के साथ हर चीज में अत्यधिक परिवर्तन हुआ हैं.
      आज के समय में प्रेम छल, कपट एवं वासना का ही प्रतीक बनके रह गया हैं, बहुत कम लोग हैं जिनके अन्दर प्रेम अब भी जीवित हैं. प्रेम ने हर क्षेत्र में अलग ही रूप ले लिया हैं, मनोरंजन के क्षेत्र में भी अब ऐसी फिल्मों, नाटकों का प्रसारण हो रहा हैं, जिनमे प्रेम को सिर्फ फूहड़पन और अश्लीलता के रूप में परोसा जा रहा हैं. इस तरह के परिवर्तन का एक मात्र कारन आज के मनुष्यों की मानसिकता हैं, जो निरंतर बदलती जा रही हैं. 'धर्मवीर भारती'  द्वारा लिखित उपन्यास 'गुनाहों का देवता' यह प्रेम की उस दशा को समझता हैं जिसमे सिर्फ त्याग हैं. कभी कभी ऐसा होता हैं कि हमारे अन्दर प्रेम की भावनाएं उत्पन्न तो हो जाती हैं, किन्तु हम उन्हें समझ नहीं पाते और यदि समझ भी जाये तो उन्हें या तो दबा दिया जाता है, या खत्म कर  दिया जाता हैं.
       समाचार पत्रों में कई ऐसे केस मिल जायेंगे जो ऑनर किलिंग पर आधारित हैं. धर्म जाति के आधार पर भी प्रेम का विनाश किया जा रहा हैं. और तो और आज कल तोह नया  ट्रेंड चल गया हैं, कि लडकी को देखा प्यार हुआ मानी तो मानी नहीं तो मार दो, रोंद दो. कहते हैं न की संसार में हर तरह के लोग व्याप्त है जिनकी मानसिकता एक दुसरे से अलग होती हैं. कुछ लोग प्रेम को भगवन का दर्जा देते है कुछ लोगों का मानना है की प्रेम का मतलब सिर्फ संभोग से हैं तथा कुछ लोग उसी प्रेम के नाम पर अनेक गलत कार्य कर रहे हैं. अगर प्रेम के जगत में आज के समय को कलयुग कहें तो वह गलत न होंगा.

Thursday, February 12, 2015

शराब से हो रही जन धन की हानि

                         शराब से हो रही जन धन की हानि


इस दौर में जहाँ लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन कर रहे हैं. वही शराब की बढ़ती मांग व खुल रहे गैर क़ानूनी ठेके इस बात का प्रमाण है कि सिर्फ अच्छे कार्यों में ही भ्रष्टता नहीं है. बल्कि शराब जैसे मादक पदार्थ में भी भ्रष्टाचार व्याप्त हैं, जिसमें धन की तो हानि होती हैं ही जन की भी हानि होती हैं. कहते हैं न कि अति हर चीज की बुरी होती हैं. शराब भी ऐसा मादक पदार्थ हैं, जिसका ज्यादा सेवन लोगों के लिए दुखदायी होता है. यह अनेक शारीरिक रोगों को उत्पन्न करती हैं व हमारे दिमाग पर भी असर करती हैं. माना कि शराब सरकार की आय का बहुत बड़ा हिस्सा मिलता है, फिर भी शराब को अवैध तरीके से बाज़ार में लाया जाता हैं. कई बड़ी कम्पनियों द्वारा शराब का उत्पादन किया जाता हैं. राष्ट्रीय पर्वों पर भी शराब पर रोक लगाई जाती हैं,, किन्तु फिर भी ब्लैक में शराब बेचीं जाती है. शराब पीने के लिए भी सरकार ने एक समयसीमा निर्धारित की, किन्तु ऐसा कुछ निर्धारित नही है कि लोग इस समयसीमा का ध्यान रखे. करने वाले हर कार्य उम्र को ध्यान में रखकर नही करते. काफी समय पहले बॉलीवुड अभिनेता इमरान खान ने कोर्ट में याचिका दाखिल की थी की शराब पीने की उम्र कम की जाये. क्योकि जब वोट डालने की सीमा १८ वर्ष है तो इसकी क्यों नहीं.
                                          बात यहां पर शराब की हानियों को लेकर नहीं की जा रही और न ही उसे पीने के अधिकार की है. बल्कि आज के समय में १०० में से १० लोग ही ऐसे होंगे जो अपने अधिकारों व अपनी स्वतंत्रता की गरिमा को समझते है तथा उनका सही उपयोग करते है. जब हमारे मौलिक अधिकारों के बारे में किसी को कोई समझ नहीं, तो शराब पीने के अधिकार को क्या समझेगा. आज तो सबके अपने नियम कानून बन गये हैं. कुछ लोग इसमें बदलाव लाना चाहते हैं और कुछ सोचते हैं की  जैसा चल रहा हैं वैसा चलने दो. हमे चाहिए की हर चीज को स्पष्टता से समझे फिर विचार करे. शराब का व्यवसाय सरकार की  जड़ों में समाया है जिसका कोई निराकरण नहीं है.

Tuesday, February 3, 2015

अस्तित्व या व्यक्तित्व

                                अस्तित्व या व्यक्तित्व 

मैं, मैं क्या हूँ.
अस्तित्व हूँ या व्यक्तित्व 
नजर हूँ या पर्दा
लाज हूँ या इज्जत
शर्म हूँ या गर्व
जब जानने की ये चेष्टा की मैंने, तो बतलाया गया मुझे कि तुम? तुम एक औरत हो बस औरत.
क्या मानती मैं इस शब्द को? 
क्या परिभाषा देती मैं इसे?
मैं तोह एक औरत हूँ जो लड़ रही हैं अस्तित्व और व्यक्तित्व की लड़ाई.
मर रही हैं पल पल, कि अस्तित्व बचाऊ या व्यक्तित्व.
किसके हनन से ज्यादा हानि होगी.
बहुत विचार करने के बाद फैसला लिया कि व्यक्तित्व का हनन तोह न जाने कब से हो रहा हैं. पर अब जो अस्तित्व के लिए लड़ रही हूँ, उसको कभी न छोडूंगी. न जाने कितनी मेहनत के बाद अस्तित्व  बचाने का बीड़ा उठा पाई हूँ, नहीं तोह अभी तक बस इसे सब रोंदते चले आ रहे थे. और रही बात व्यक्तित्व की, वह आज हैं कल नहीं. अस्तित्व के सहारे ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है. और वैसे भी औरतों के लिए कभी कोई सफ़र आसन नहीं रहा, उन्हें हमेशा चुनाव करना पड़ता हैं. जिन्दगी के हर कदम पर कभी पिता कभी भाई कभी पति और कभी बच्चों के बीच चुनाव. जहाँ हमेशा औरतों ने समझोते किये हैं. अपने अस्तित्व से ज्यादा उन्हें औरो की परवाह रही. बस एक चीज अच्छी हुई की इस चुनाव के दौर से निकलते हुए और वह यह कि अब औरत ने अपने अस्तित्व को चुना है. और वह लड़ भी रही है. बहुत अच्छा लगता हैं यह देखके की अब औरत  बेचारी वाली प्रवत्ति से उठ रही हैं. और वह लड़ रही है.. और विश्वास हैं की एक न एक दिन वह अपने अस्तित्व की लड़ाई जरुर जीतेंगी.