प्रेम
कहते है प्रेम एक ऐसा शब्द है जो सदियों से चला आ रहा हैं. आज भी हम किसी न किसी रूप में प्रेम को अपने अन्दर पाते हैं, प्रेम को दो व्यक्तियों से परिभाषित नहीं किया जा सकता. चाहे माँ-बाप के प्रति, पुत्र-पुत्री का प्रेम, भाई-बहन का प्रेम या युवक युवती का प्रेम. हमारे पुरानों में राधा कृष्णा का प्रेम सर्वोपरी माना जाता हैं, किन्तु आज के युग में ऐसा प्रेम सिर्फ कहानियों में ही रह गया हैं. समय के साथ हर चीज में अत्यधिक परिवर्तन हुआ हैं.
आज के समय में प्रेम छल, कपट एवं वासना का ही प्रतीक बनके रह गया हैं, बहुत कम लोग हैं जिनके अन्दर प्रेम अब भी जीवित हैं. प्रेम ने हर क्षेत्र में अलग ही रूप ले लिया हैं, मनोरंजन के क्षेत्र में भी अब ऐसी फिल्मों, नाटकों का प्रसारण हो रहा हैं, जिनमे प्रेम को सिर्फ फूहड़पन और अश्लीलता के रूप में परोसा जा रहा हैं. इस तरह के परिवर्तन का एक मात्र कारन आज के मनुष्यों की मानसिकता हैं, जो निरंतर बदलती जा रही हैं. 'धर्मवीर भारती' द्वारा लिखित उपन्यास 'गुनाहों का देवता' यह प्रेम की उस दशा को समझता हैं जिसमे सिर्फ त्याग हैं. कभी कभी ऐसा होता हैं कि हमारे अन्दर प्रेम की भावनाएं उत्पन्न तो हो जाती हैं, किन्तु हम उन्हें समझ नहीं पाते और यदि समझ भी जाये तो उन्हें या तो दबा दिया जाता है, या खत्म कर दिया जाता हैं.
समाचार पत्रों में कई ऐसे केस मिल जायेंगे जो ऑनर किलिंग पर आधारित हैं. धर्म जाति के आधार पर भी प्रेम का विनाश किया जा रहा हैं. और तो और आज कल तोह नया ट्रेंड चल गया हैं, कि लडकी को देखा प्यार हुआ मानी तो मानी नहीं तो मार दो, रोंद दो. कहते हैं न की संसार में हर तरह के लोग व्याप्त है जिनकी मानसिकता एक दुसरे से अलग होती हैं. कुछ लोग प्रेम को भगवन का दर्जा देते है कुछ लोगों का मानना है की प्रेम का मतलब सिर्फ संभोग से हैं तथा कुछ लोग उसी प्रेम के नाम पर अनेक गलत कार्य कर रहे हैं. अगर प्रेम के जगत में आज के समय को कलयुग कहें तो वह गलत न होंगा.