Friday, October 9, 2015

छुपाओ नहीं बताओ

जब मुझे पहली मासिक धर्म हुए, तो मैं डर गई,

लेकिन जब डॉ. आंटी ने इसके कारण और जरूरत को समझाया तो थोड़ी संतुष्टि सी हुई.

लेकिन इन चार दिनों की झंझट मुझसे न संभाली गई,

न चाहते हुए भी मेरे चेहरे पर झुंझुलाहत आ गई.

मेरे चेहरे पर परेशानी देखकर मेरे दोस्त ने मुझसे पूछा- छुटकी तुझे क्या हुआ है.

तेरे चेहरे का तो रंग ही उड़ा हुआ है

बहुत मना करने के बाद जब मैंने उसे अपनी हालत बताई.

वो तो स्तब्ध हो गया, बोला ये कैसी परेशानी है जो सिर्फ तुम्हे ही आई.

ये परेशानी मेरी नहीं बल्कि उन सब लड़कियों की है जो मेरी उम्र में आती हैं.

रक्तपात, दर्द, कमजोरी वो सहन नही कर पाती है.

सुनकर ये बातें गोलू दौड़ा अपने घर जाकर बोला अपनी माँ से

माँ! क्या तुम भी उस दर्द से गुजरती हो, जिससे छुटकी गुजर रही है.

माँ बोली क्या?

अरे वही मासिक धर्म!!!

सुनकर ये बात वो दौड़ी मेरे घर को, बोली तनिक भी लज्जा और शर्म नहीं है तुमको.

काकी, इसमें लज्जा और शर्म की क्या बात है.

ये तो हम और आपके लिए आम बात है.

माहवारी शाप नहीं, महिला शरीर की आवश्यकता हैं.

इसे छुपाने में क्या बुद्धिमत्ता हैं.

अरे बेशर्म, इन सब बातों को अपने तक ही रखा जाता है.

इन्हें ऐसे किसी पुरुष को नहीं बताया जाता है.

ये बात तुम्हारे भी अपमान की है,

इसको ऐसे बताना हानि तुम्हारे मान सम्मान की है.

काकी, ये तो एक प्राकृतिक प्रक्रिया है,

जो हर औरत के जीवन की एक क्रिया है.

वैसे भी डॉ. आंटी ने कहा है कि-

अब इसे 'छुपाओ नही बताओ'....

No comments:

Post a Comment