Wednesday, October 7, 2015

अब बस करो

ये सुनना कितना दहशत भरा लगता हैं कि इंसानियत ने या ये कहे हैवानियत ने क्या रूख ले लिया है. ये कौन लोग हैं जो न जाने किस युग में जी रहे है. उन्हें क्या लगता हैं की ऐसा करना काबिले-तारीफ हैं. क्या इससे वो अपनी धार्मिक भावनाओं का उजागर कर रहे हैं या वो इतने संजीदा हैं अपनी धार्मिक निष्ठा को लेकर की कोई कैसे इसका मजाक उदा सकता हैं.. क्या वाकई???? जो कुछ पिछले दिनों दादरी में हुआ वो एक ऐसी शर्मनाक हत्या थी जिसको धर्म-जाति से जोड़ दिया गया. गायों की स्थिति अब वैसी नहीं रही जैसी की 'प्रेमचन्द' जी ने अपनी किताब 'गोदान' में दर्शायी थी, कि एक व्यक्ति कैसे निरंतर सोचता रहता है की काश कोई गाय उसके दरवाजें को सुशोभित करे, वो उसकी सेवा कर सके. उसका दूध दही उसके परिवार के स्वास्थ्य को बड़ायेंगा. अब तो न जाने कितनी गाय सड़कों पर लोगो की गलियाँ खाती घूम रही हैं. उनका कोई देखने वाला नहीं है. मैं ये नहीं कह रही की अगर गाय फालतू है तो उन्हें दूसरो की थाली में परोस दो. गाय हमारी संस्कृति से आज से नहीं न जाने कबसे जुडी हुई हैं. ग्रंथो में गाय के मूत्र तक को पवित्र कहा गया हैं. फिर ये स्थिति कब उत्पन्न हुई की गाय ऐसे रास्ते में दर दर भटकने पर मजबूर हो गई. जितने लोगों ने मिलकर उस एक व्यक्ति को मारा है अगर वो सब एक एक गाय को भी अपने घर रख ले, तो गायों की इस दयनीय स्थिति में कुछ तो सुधार हो. हर बात को धर्म से जोड़ना बेकार हैं. क्योंकि ऐसे बहुत से दलित है और ऐसे दूसरे लोग जो गाय का मांस खाते है. बस किसी का मुस्लिम होना इस बात का प्रमाण नहीं की वो दोषी हैं. और इन सबसे ऊपर ज्यादा धर्म संस्कृति का ठेका लेने वाले लोग अब तो तुम लग ही जाओ गाय पालन के लिए.. कम से कम तुम्हारी मांशिक स्थिति में न सही किन्तु तुम्हारे स्वास्थ्य में सुधार जरूर आ जायेगा.

1 comment:

  1. चिंता जायज है सोनम... धर्म का प्रयोग लोग अपने हिसाब से करने लगे हैं. आस्था अलग तरह से अभिव्यक्त की जाने लगी है..

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