Sunday, November 16, 2014

मैं अनाथ हूँ.........

                                          मैं अनाथ हूं


मैं लड़की, मैं अनाथ हूं। मुझे तो याद भी नहीं कि कब मुझे जन्म देने वाली लड़की ने खुद लड़की होते हुये मुझ जैसी लड़की को अनाथ कर दिया। बस याद तो मुझे वहां से हैं, जब एक मुझ जैसी बूढ़ी लड़की मुझसे कूड़ा बिनवाती भीख मंगवाती थी। बदले में उसके उस गोल बड़े से पहिये जैसे घर में मुझे खाने को एक रोटी और सोने को जगह मिल जाती थी। मुझ जैसी न जाने कितनी लड़कियां थी वहां हर पहिये वाले घर में। मां षब्द का मतलब ही नहीं पता मु़झे, बस ये पता हैं कि वह बूढ़ी लड़की अपने आपको मां कहलवाती थी। जब मैं समझने लगी कि मैं एक लड़की हूं, जिसका अस्तित्व यही पहिये वाला घर है और इसी घर में मैं भी इन बूढ़ी लड़की जैसी हो जाऊंगी। तभी वो मुझे ले गई एक बड़ें से घर में। वो बड़ा सा घर! समझ ही नहीं आ रहा था कि ऐसा घर भी होता हैं। वहां साफ सुथरे कपड़ों मे बैठी एक और मुझ जैसी लड़की ने मुझे प्यार से बुलाया। उस दिन मैं पहचानी थी कि कोई प्यार से बोलने वाली भाषा भी होती हैं। उस बूढ़ी लड़की ने मुझे वहां छोड़ दिया। उस घर का दृष्य आज भी मेरे जहन से नहीं जाता जहां भर पेट खाना, साफ कपड़ें पाकर मैं बेहद खुष थी। नई मां जैसी लड़की ने मुझे दुलार किया। वहां किसी भी लड़की कोई कोई कष्ट नहीं था लेकिन सवालत् बहुत से थे। मैं जब इस स्थिति व आराम की बेला को समझ पाती, तब तक देखा कोई मुझसे मिलने आया हैं। मैं आष्चर्य में थी कि मेरा तो कोई नहीं है, यहां तक किसी अपने का एहसास तक नहीं है मुझे। फिर ये कौन मिलने आया है? आकर देखा तो एक व्यक्ति मुझे अपने साथ ले जाने के लिये खड़ा था। मैनें उस दुलारी मां की तरफ देखा तो पाया कि उनके मुख का स्वरूप ही बदला हुआ है। मैं उनसे सवालात् ही क्या करती, जबकि मुझे उन तमाम लड़कियों के सवालों के भी जवाब मिल गये थे। मैं चल पड़ी फिर अपनी अजनबी राहों पर। मेरा चीखना चिल्लाना कौन सुनता और मैं सुनाती भी किसे, मैं अनाथ जो थी। आज जब मैं भी एक बूढ़ी लड़की की अवस्था में आ पहुंची हूं, फिर वहीं अपने पुराने पहिये वाले घर में तो आज समझ में आ गया है कि अनाथ लड़की का मतलब क्या होता हैं। दुनिया भर की चकाचैंध के बाद आना वही होता है जहां से षुरूआत होती हैं। लेकिन मैं अब क्या करूं? आज फिर एक अनाथ मेरे हाथों आई है उस कूड़ें के ढेर से। क्या मैं उसको वही रखकर मरता हुआ छोड़ दूं, या अपनी तरह अनाथ बना दूं। आज ज्ञात हो गया कि गलती उस बूढ़ी लड़की की नहीं है जिसने मुझ अनाथ को जिन्दा रखा। गलती तो उन लड़कियों की होती है जो इन अनाथों को पैदा करती है और छोड़ देती है किसी कूड़े ढेर में अनाथों की जिन्दगी जीने के लिये और सिर्फ जिन्दा रहने के लिये।


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