Monday, September 8, 2014

बस थोड़ा सा ख्याल.........

                           कुपोषितों को चाहिये थोड़ा ख्याल     

प्रारम्भिक बाल्यावस्था में बच्चों की सर्वांगीण देखरेख करना अतिआवष्यक हैं, क्योंकि यहीं एक समय हैं जब बच्चों का षारीरिक से लेकर मांषिक विकास होता हैं। और प्रारम्भ में देख रेख की कमी के कारण बच्चें कुपोषण का षिकार होते हैं। विकसित राष्ट्रों की अपेक्षा विकासषील देषों में कुपोषण की समस्या सर्वांधिक हैं। इसका प्रमुख कारण है गरीबी। 
 भारत में हर तीन गर्भवती महिलाओं में से एक कुपोषण का षिकार होती हैं, जिससे उनमें खून की कमी होती हैं। जिसकारण वह खुद तो इससे ग्रस्त होती ही है साथ ही होने वाले बच्चे पर इसका प्रभाव पड़ता हैं। भारत में प्रत्येक वर्ष 20 लाख बच्चें 5 वर्ष की आयू पूरी नहीं कर पाते। और 1000 बच्चें प्रतिदिन डायरिया की वजह से मरते हैं। विष्व में भारत में सबसे अधिक प्रोग्राम बालविकास को लेकर चलाये जाते हैं, फिर भी यहां कुपोषण दर सबसे अधिक हैं। भारत में बच्चों की यह स्थिति किसी अमरजेन्सी से कम नहीं हैं। यही मानव विकास के लिये सबसे बड़ी चुनौती है। भारत में 43 प्रतिषत बच्चें कुपोषण का षिकार हैं। यह कोई छोटी बात नहीं है, फिर भी यह हमारी नीतियों व निजि जिंदगी को उतना प्रभावित नहीं करती जितनी करनी चाहिये, हमे इसके लिये भी अत्यधिक जागरूक होना चाहिये।
 मीडिया को चाहिये कि इसको भी उतनी प्रमुखता दें, जितनी बाकी विकास सम्बन्धी कार्यों को दी जाती हैं। जिसतरह मीडिया के द्वारा हम भारत को पोलियो मुक्त राष्ट्र की श्रेणी में रख पाये है उसी तरह कुपोषण से भी मुक्ति पायें। किन्तु बच्चों की इस तरह की जिन्दगी और उनके स्वास्थ्य को अनदेखा करना हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी में आम बात हो गई हैं। खबरों के अलावा कई ऐसी फिल्में आई हैं जो हमें इसके लिये झकझोंर के चली गईं हैं किन्तु कितने समय के लिये? ऐसा नहीं है कि हमारे पास संसाधन कम हैं या योजनायें नहीं हैं, किन्तु समझ में नहीं आता कि योजनायें व जागरूकता अभियान निर्माण के लिये बनाये जाते हैं या प्रमाण के लिये?

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