Thursday, August 28, 2014

बेटियां.....

                                   हम ही से हैं

इस प्रतिष्टित समाज में अगर पानी हो थोड़ी सी जगह, तो क्या दोगें?
दोगें क्या? क्या तुम मानोगे, कि है हमारा अस्तित्व भी, गर तुम न हो।
है हमारा अधिकार भी, गर तुम ना दो।
है हमें भी चाह हर उस चीज की, जिसको पाने की राह तुम्हें हम ही से मिली।
गर कर लोंगे जरा सा सम्मान तो तुम्हारा क्या बिगड़ जायेगा, तुम्हारे सम्मानों के लिये बिगाड़ा हमने हम ही को है।
बिगाड़ रहे हो गर आज, तो ये चक्र फिर से घूमेंगा।
रहें बिलख गर आज हम, तो चैन से तुम कहां सो रहें?
पुराणों में भी लिख दिया, कि है हम घर की स्वामिनी।
हम ही से है ये संसार और रची ये धरती हम ही ने ही।
दिया अगर सम्मान, तो तिरस्कार भी तुमने दिया।
सवाल तो तुम पर भी थे, क्यों अग्नि परीक्षा हम ही से ली।
हैं बहुत सी विडम्बना, छाया है घोर अन्धेरा।
सवाल तो बहुत से है, गर जवाब तुम दे सको।

हैं तुम्हारे घर में भी बहु, बीवी, बेटियां।

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